लघु कथा संग्रह – धुर्रा

धुर्रा
(नान्हे कहिनी)
जितेंद्र सुकुमार ‘ साहिर’

वैभव प्रकाशन
रायपुर ( छ.ग. )

छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर
के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित

आवरण सज्जा : अशोक सिंह प्रजापति
प्रथम संस्करण : 2016
मूल्य : 50.00 रुपये
कॉपी राइट : लेखकाधीन

भूमिका

कोनो भी घटना ले उपजे संवेदना, पीरा ल हिरदय के गहराई ले समझे बर अउ थोरकिन बेरा म अपन गोठ-बात ल केहे बर अभु लघुकथा या नान्हें कहिनी ह एक मात्र ससक्त विधा हे। नान्हें कहिनी हा अभु के बेरा म समाजिक बदलाव के घलो बढिया माध्यम हे। समाज म बगरे जम्मो सोसन, अत्याचार अउ अनैतिकता के खिलाफ बोले बर भी नान्हें कहिनी सुग्घर माध्यम हे।

हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म गज्जलकार के रूप म परसिद्ध जितेंद्र ‘सुकुमार’ ल नान्हें कहिनीकार के रुप म देख के मोला बड़ खुसी होईस।

छत्तीसगढ़ी म घलो हिन्दी के लघुकथा के तरज म नान्हें कहिनी गद्य म साहित्यकार मन लिखत हे। अइसने नान्हें कहिनी लिख के छत्तीसगढ़ी गद्य ल समरिद्ध करे के परयास जितेंद्र हा करे हे। ऊँकर ये परयास हा बड़ सुग्घर हे।

‘धुर्रा नान्हें कहिनी म जितेंद्र ह अपन आगु-पाछू के घटना अउ अपन निजी अनुभव ल मन म बांटे हे। ओकर कहिनी के भासा सोझ-सोझ अउ साधारण छत्तीसगढ़ी के बोलचाल के भासा हे। सिक्छा ले जुरे होवे के कारन ऊँकर नान्हें कहिनी म सिक्छा ऊपर बने व्यंग्य देखे बर मिलथे त कोनो कहिनी म सिक्छा के महत ला बताये हे। अइसने कहिनी मन मा ‘फेल’, ‘इसारा’, ‘अप्पढ” ‘इंतजार’, ‘परीक्छा’, ‘रेट’, अतिसेस अउ अनुसासन हे। ‘फेल’ नान्हे कहिनी म अभु के सिक्छा के बेवस्था के हाल बताये गेहे। लइका मन ला कुछु आय चाहे झन आये फेर सासन के निरदेस म ओला आगु कक्षा में बढाना जरूरी होगे हे।

‘अनुसासन’ म प्रिंसपल ह स्कूल देरी ले आथे अउ लइका मन ला कहिथे- ‘अनुसासन सब बर जरूरी हे। अनुसासन म मनखे महान बनथे।’ फेर आज के लइका मन कम नइये। ओतका ल सुन के पाछू के एक झन लइका खड़ा हो के पूछथे- ”सर ये अनुशासन काला कथे।”

जितेंद्र ह अपन ये कहिनी म बढिया व्यंग्य करे हे। अइसने सिक्छा ले जुरे, नान्हें-नान्हें परसंग म सुग्घर-सुग्घर अउ महत्वपूर्ण गोठ मन ला बताये हे। जितेंद्र के ये परयास हे कि हमर सिक्खा म सुधार होवे अउ गुणवत्ता आये।

‘पानी’ नान्हें कहिनी ह हिरदय ल छूथे। आज के लइका मन हा जियत ले तो पानी नई पूछे। मरे के पाछू पानी दे बर नौकरी ले छुट्टी लेथे। सियानिन मंटोरा के देखइया कोनो नई हे। पियास मरत मंटोरा ह नाती ल पीये बर पानी मांगथे त नाती कहिथे- ”मोर करा टाइम नइये। मोला ड्यूटी म जाना हे।” कहिके चल देथे। पियास म मंटोरा मर जथे त ओकर नाती ह पानी दे के कार्यकरम बर एक हफ्ता के छुट्टी लेथे। ये कहिनी हा आज हमर समाज के संवेदनहीनता ला बताथे।

‘हाटाटेट’ डॉक्टर मन ऊपर अउ अस्पताल के बड़ खरचा ऊपर बढिया लिखे गे हे।

‘आदिमानव’ जितेंद्र के सुग्घर नान्हें कहिनी आय। जेमा अपसंस्कीरती ल देख के लेखक चिन्ता म डूबे हे अइसने दिखथे। अभु के टूरी मन आदिमानव कस पूरा कपड़ा नइ पहिनै। टी.बी. म देख के सुकारो हा कहिथे- ”वाहद्दे गा आदिमानव मन टी बी म आय हाबे।”

‘पारी’ कहिनी म नसा ल लेके लेखक सोच म पडे़ हे। पढे-लिखे मन तक सराब पीयत हे। अइसने सराबी के बेटा हा कहिथे- ‘पीयई-पीयई मा हमर बबा मरगे, ताहन बाबू के अनुकंपा म नौकरी लगिस। अब हमर पारी हे।’

‘धुर्रा’ नान्हें कहिनी हा संगरह के माय सीर्षक हे। येमा कथनी अउ करनी म अंतर ऊपर सटीक व्यंग्य देखे बर मिलथे। ‘ समझदारी’ ‘परिवर्तन’ ये संगरह के सुग्घर कहिनी हे। मोबाईल नम्बर, ‘सलेक्शन’, बड़े मनखें’, ‘सहेली’, कलेचुप अउ अटल चौक जितेंद्र के ये कहिनी मन बड़ साधारण हे। अभु जितेंद्र नान्हें कहिनी के क्षेत्र म नवा-नवा पांव धरे हे। ओकर कहिनी के येहा पहिली सीढिया आय। आगु जाके सुग्घर नान्हें कहिनी सुध्घर अउ परिपक्व होही। भविष्य में ये बिधा म ओकर बने नांव
होही। इही आसा अउ असीस संग।

प्राचार्य डॉ. श्रीमती शैल चंद्रा
शास. उच्च. माध्य. विद्या. रावणभाठा, नगरी
सिहावा, तहसील-नगरी जिला-धमतरी
जिला- धमतरी ( छ.ग. ) ( छत्तीसगढ )

असीस पाती

साहित के अबड़ अकन बिधा हे जेमा लघु कथा के खास इस्थान हे। लघु कथा जेला छत्तीसगढ़ी म ”नान्हे कहिनी” केहे म कोनो ल आपत्ति नइ हो सकय। जइसे के केहे गेहे हे साहित के अबड़ अकन बिधा हे कोनो भी रचनाकार कलम धरथे त सबले पहिली कबिता लिखथे। मोला मालूम हे जितेंद्र के पहिली संघरा घलो पद्य के रूपेच म आय हे । मोर इसारा ‘पीरा ल कइसे बतावंव संगी’ डाहर हे । ये दूसरा संघरा गद्य के रुप में आवत हे जेमा जितेंद्र के 31 नान्हे कहिनी के संघरा हे। गद्य के दुनिया म जितेंद्र सुकुमार के सुवागत हे।

कबिता म अपन भावना ल बियक्त करे म जादा सब्द के जरूरत नई राहय। फेर गद्य म अइसन नइहे । पूरा वाक्य लिखे बर परथे। वो हर वाक्य सही राहय बियाकरन अउ वर्तनी सही राहय येकर धियान देना परथे। गद्य लेखन के नियम पालन घलो जरूरी रथे, विराम चिनहा के सही उपयोग जरूरी रथे। तब गद्य के असर होथे। ये सब के बिना गद्य लेखन इस्कुली लइका के नकल जइसे हो जाथे।

वइसे छत्तीसगढ़ी नवा भासा आय। अइसे एकर सेती काहत हंव के अभी तक एला संविधान के आठवां अनुसूची म जघा नइ मिल सके हे। छत्तीसगढ़ी के एक झन बड़का साहितकार सुशील भोले के कहना सही लगथे के छत्तीसगढ़ी म गद्य सहित के कमी एकर आठवां अनुसूची म आय बर बाधा के रुप म आगू आथे । अइसन म जितेंद्र के कहिनी विधा म लेखनी चलाय के जबर सुवागत होना चाही।

संघरा के कहिनी मन ऊपर नामी लघु कथाकार श्रीमती शैल चंद्रा जी अपन बढिया समीक्षात्मक भूमिका लिखे हवय। जितेंद्र ‘सुकुमार’ इस्कुल म मास्टर हवंय। संघरा के बहुत अकन बिसय सिक्छा जगत के हाल-चाल ल उजागर करने वाले हे।’
सिस्टाचार’ कहिनी ह जितेंद्र ल बड़का कहिनीकार साबित करने वाला कहिनी आय। एकर पीछू दू ठी कारन हे- पहिली प्रिंसपाल साहब हे सिस्टाचार सिखाय के जउन तरीका अपनाय हे वोह दिल ल छूने वाला हे। सब कहिथे के डरा धमका के कोनो ल सीख नई दे जा सके। फेर तरीका कोनो नइ बताय। ये कहिनी म वो तराकी बताय गे हे। दूसर कारन हे ये कहिनी के चोरी घलो हो चुके हे। बिलासपुर दैनिक भास्कर के ‘ संगवारी’ म कोनो उठाईगिर ह ये कहिनी म हाथ साफ कर चुके हे। मैं मानथौ के कहिनीकार के कहिनी चोरी होना बडे कहिनीकार होय के परमान आय। ‘परीक्छा’ अऊ ‘ पारी’ कहिनी म मनखे के सुवारथी बेवहार कोती अच्छा बियंग करे गे हे। जेनहे बड़े ल मान-सनमान देय म फेल हो गे तेन ह परीक्षा देवाय ल जात हे के कोनो नौकरी-चाकरी मिल जाय। वइसने एक झन बेटा नौकरी पाय बर नौकरी म रहिते-रहिते बाप के मउत ल सोरियावत हे ताकि अनुकंपा म नौकरी मिल जाय। काय करबे बेरोजगारी बड़ जिवलेवा होथे।

‘मोबाइल’ कहिनी ह एक ठी छत्तीसगढ़ी हाना के सुरता देवाथे- ‘दांत हे ते चना निही, चना हे ते दांत निही’। ‘लबारी’ नांव के एक ठी कहिनी हे । फेर संघरा म लबारी के महिमा उपर तीन ठी कहिनी हे। दूसरा पारटी के रूतबा अउ तीसरा अटल चौक। नान्हें कहिनी म एला लबारी-1, लबारी-2, लबारी-3 के रुप म लिखे जा सकत रिहिस।

वइसे ये ह जितेन्द्र के ये विधा म पहिली परयास आय। मोर सुभकामना हे परकासन होय के बाद जानकार मन के धियान ये संघरा कोती जरूर जाही। अउ पाठक मन एकर आनंद लिहीं। ओकरे संगे-संग कहिनी विद्या के जानकार मन के आसिरबाद घलो मिलही । मोर डाहर ले कोठी-कोठी असीस अउ बधई।

– दिनेश चौहान
साहितकार, शिक्षक
छत्तीसगढ़ी ‘चौखडी जनडलाकार’
छत्तीसगढ़ी ठिहा, सितलापारा, नवापारा, राजिम, मो. 9826778806

मोर गोठ
चार पहर रतिहा अउ चार पहर दिन, दूनो मिलाके आठ पहर होथे। ये बेरा न जाने कब काकर सन का गोठ हो जही। उही गोठ म लुकाय ग्यान हमर जिनगी ल ही रद्दा म ला देथे। सिरीमद् भागवत महापुरान के एकादस इस्कन्ध के अध्याय सात म बताय गेहे कि तेजस्वी अवधूत भगवान दत्तातरेय ह चडबीस झन गुरु बनइस | जेकर ले ग्यान मिले गुरु मान ले। वोइसने ऐमा डेढ कोरी एक माला हे। जम्मो के अपन अलग-अलग मायने हे । जेन पढे के पाछु समझ आधथे।
जिनगी म कतकोन घटना घटत रहिथे । कोन्हो सुखद त कोन्हो दुखद होथे । सब देखे अउ समझे के नजरिया आय । कहे के मतलब कोन्हो बिखर जथे त कोन्हो निखर जथे। धुर्रा मोर नान्हे कहिनी के माई मुडी हरय। धुर्रा ल चंदन बनाय के नानचुक परयास झलकही। ये संघरा के जम्मो किस्सा, कहिनी सिरतोन आय। पातरा के नांव ह काल्पनिक हे फेर मिथलेस ह मोर संगवारी घलो हरे। येमा दू, चार ठन किस्सा वोकरे संग घटे हावय। तीर तखार अउ मोरो संग घटे वाकिया येमा मिंझर गेहे। कुल मिला के धुर्रा ल चंदन के उपमा कतका सही रही मन के हाथ म हे।

जितेंद्र सुकुमार’

अनुक्रमणिका

1. बडे मनखे
2. कलेचुप
3. सुन्दरता
4. पानी
5. सच
6. पारी
7. अनुसासन
8. सहेली
9. मोबाइल नम्बर
110. इन्तजार
11. सिसटाचार
12. का होही संगवारी
13. परिवर्तन
14. आदिमानव
15. धुर्रा
16. मया
17. रेट
18. शिकायत
19. अंगूठा छाप
20. परीक्छा
21. अटल चौक
22. इसारा
23. फेल
24. पार्टी के रुतबा
25. खरचा
26. सलेक्सन
27. हाटारेक
28. समझदारी
29. अतिसेस
30. अप्पड़
31. लबारी

बडे मनखे

मउसम बने रिहिस हे। छत्तीसगढी साहित्य के लिखइया साहित्यकार मन एक जगह जुरिआय रिहिस। जेमा ‘किसनहा’ कवि घलो आय राहय। कार्यक्रम चलत राहय ‘किसनहा’ कवि पानी पीये बर बाहिर डाहन निकलिस। त देखथे एक झन बहुत बडे कवि आवत रिहिस हे, जेकर वोहा तारीफ करय ।

दू दिन पहिली ओकर ले मोबाइल म घलो गोठ -बात हो राहय। वोला देखके वोकर खुशी के ठिकाना नइ राहय, वोहा धुरिहाच ले वोला नमस्ते कहि डरथय अउ सोचत रथे तीर म आही त पाँव पर लेहूँ कहिके, फेर वो मनखे ह वोला पूछिस घलो नही सीधा भीतरी डाहन रेंग देथे ।




कलेचुप

मिथलेश लकर-धकर साइकल ल टेकाथे अउ स्कूल के भीतरी म जाथे। जकर – बकर देखथ त तीर म कोनो नइ दिखय एक झन टूरी ल छोड के । मिथलेस वो टूरी के तीर म जाथे अउ कहिथे, ‘ एक्सक्यूजमी’, पत्राचार के फारम कतिहां मिलत हे।” वो टूरी कुछू नइ बोलय, कलेचुप रथे। मिथलेस आगू डाहर जाथय अउ थोड्कीन बाद पत्राचार के फारम धर के आवत रथे त ओ टूरी दउड़त -दउड़त मिथलेश के तीर म जाथे अउ मिथलेस ल कहिथे, ‘ एक्सक्यूजमी’, पत्राचार के फारम कदे जगा मिलत हे।” अब मिथलेश बदला निकालथे। वहू कलेचुप।





सुन्दरता

स्वतंत्रता दिवस के दिन जम्मों गुरूजी मन झटकुन आबो। कहिके एक दिन पहिली बइठक म फैसला करीस । स्वतंत्रता दिवस के दिन लइका, गुरूजी अउ गाँव के सियान मन पहुँचगे। झण्डा तको सुग्घर फहरा डरिस । तीन-तीन के कतार बना के लइका मन गेट करा पहुँचगे रिहीस, ततकी बेर एक झन मेडम स्कूल अइस वो बढिया सज सँवर के आय रिहिस हे । समिती के अध्यक्ष ह वोला आवत देख डरिस त कहिस, ‘झण्डा फहिराय के बाद तुमन आहू त लइका मन ल का सिखा हूँ।’ में वो मेडम के मुहूँ ल देखत रेहेंव सरम के मारे ओकर सुन्दरता पच्चरा होगे।




पानी

मंटोरा घर म अकेल्ला राहय। सबो झन बेटा मन अलग-अलग खाय। सियाना सरीर म मंटोरा के जागर नई चलय,एक दिन मंटोरा के तबियत जबरदस्त खराब होगे। ले देके रेंग पाय, भात रान्धे त खाय, नही त कई-कई दिन ले लाघन सुत जाय।
एक बार पानी पियास मरत राहय अपन नाती ल पानी मंगिस त ओकर नाती ह कहिस, ‘मोर कर टाइम नइए मोला डियुटी म जाना हे।” कहिके खेद दिस, बोरिंग धुरिहा राहय, जाँगर चले त खुद जाय लायबर कोनो ल नई मांगे। दू दिन बाद मंटोरा मर जथे। ये खबर ल सुन के ओकर नाती ह पानी दे के कार्यकरम बर एक हफ्ता के छुटटी लेथे।





सच

भक्कू के एक रूपया पइसा ल नोहर धर लेथे, भक्कू मेडम कर जाथे अउ कहिथे, ‘मेडम, नोहर मोर पइसा ल धर लिस।’
मेडम पूछथे, ‘कइसे रे?’
नोहर कथे, ‘मोर पइसा हरे, माँ दिस हे।’
वोकर भाई सोहन कहिथे, ‘हाँ मेडम हमर माँ दिस हे।’
भक्कू कहिथे, ‘नही मेडम एमन लबारी मारत हे।’
मेडम ह नोहर ल कहिथे, ‘जा रे मोर मोबाइल ल लाबे तोर माँ ल फोन लगा के पूछ हूँ।’
नोहर डर्रात-डर्रात लाथे, मेडम असली बात ल समझ जथे। ताहन वोला लुलहार के पूछथे, मेडम ह ‘ये पइसा ल कदे जगा पाय हस रे?’
नोहर हाथ ल देखा के कहिथे, ‘बोदे जगा।’




पारी

राजेश एक दिन लोकेश ल कहिथे, ‘कइसे रे तोर बाबू ह पढे-लिखे हाबे, तभो ले दारू पी के अलकरहा कोन्हो जगा सूत जाय रथे, वोला समझातेव नहीं ते।’
राजेश कहिथे, ‘वोला काय समझाबे रे भाई, वो खुदे समझदार हे। हमर बबा घलो अबडु पीये तभोले बाबू वोला कुछू नइ काहय अउ ओकर बर उपरहा ला-ला के दे, ले गा पी कहिके।’
‘पीयई-पीयई मा हमर बबा मरगे ताहन बाबू के अनुकम्पा म नौकरी लगिस, अब हमर पारी हे।”




अनुसासन

कार्यकरम बने चलत रिहिस, लइका मन सबो झन मजा लेवत रिहिन । गाडी के आवाज ल सुन के सबो लइका मन गेट डाहन देखे ल धरलिस।
प्रिंसपल ह रोज दिन कस आजो देरी से आवत राहय, कार्यकरम, समापन म सबो शिक्षक मन अपन-अपन गोठ ल गोठियाइस ।
आखिरी म प्रिंसपल साहब के बारी अइस त वोहा कहिथे, ” अनुशासन सब बर जरूरी हे, अनुसासन म मनखे महान बनथे।”
ओतका ल सुन के पाछू के एक झन लइका खड्डा हो के पूछथे, ‘सर ये अनुसासन काला कथे ?’

सहेली

राधिका सोनी ल कहिथे, ” अरे तोर रात डियुटी हे का, तोर इयरफोन ल मोला दे तो, मोर कर एको ठक नइये मे गाना सुन हूँ। बिहनिया लेग जबे।” सोनी दे के चल देथे। रसमी ह अक्केला हो कहिके राधिका के बेड म गोठियाय बर चल देथे, गोठ-गोठ म आय के बेर रसमी अपन इयरफोन ल राधिका के बेड म भुला जथे।
बिहान दिन रसमी अउ सोनी अपन इयरफोन ल अबडु खोजथे, कहाँ रख डरेन कहिके । उदूप ले सोनी ल सुरता आथे राधिका माँगे हे कहिके, राधिका ल कहिथे, ” दे रे मोर इयरफोन ल।” राधिका कहिथे, ” मेह तोर बेड म छोड के आय हो अउ नई जानो।”
राधिका डियूटी म जाथे, सोनी अउ रसमी कलेचुप ओकर बेग ल खोल के देखथे । इयरफोन ल अपन कपडा म लपेट के रखे रथे, राधिका ह। दोनो सहेली मन अपन-अपन इयरफोन ल निकाल के बाकी सामान ल जस के तस रख देथे। सोनी कहिथे, ” रसमी हमन कबो रे हमर बेड म रिहिस हे कहिके, राधिका हमर सहेली आय, चोराय हस कबो त सर्मिंदा हो जही।”

मोबाइल नम्बर

राजू सइकल म कालेज जाय। ओकर घर के इसतिथि अच्छा नई राहय। ओकर बिबहार सब ल पसंद आय । एक दिन कालेज के छुट्टी के बाद वोहा घर जाय बर सइकल ल निकालत रथे । एक झन टूरी अपन कापी ल खोल के अउ हाथ म पेन ल धर के खडे राहय। जइसे राजू ल आवत देखथे त राजू ल पूछथे, ”ये सुनतो तोर मोबाइल नम्बर का हरे।”
राजू सरम अउ संकोच म धीर लगा के कहिथे, ” हमर घर मोबाइल न हे।” समय बदल जथे, दू साल बाद राजू के नौकरी लग जथे । गाडी खरीद डरथे अउ थी जी के मोबाइल घलो ले डरथे। फेर एक ठक चीज के हमेसा अफसोस रहिथे, न वो लड्की के पता हे, न ओकर मोबाइल नम्बर ।

इन्तजार

रोहित कालेज के चक्कर लगात-लगात थक जथे। फेर ओकर मार्कसीट नई मिल पाइस । एक दिन फेर हिम्मत कर के जाथे। दस बजे के बेरा आय, सीधा स्टाफ रूम म जाके कहिथे, ” सर मोर अंकसूची ल लेगे बर आय हो।” सर मन बिना कक्षा ल पूछे कहिथे, ”दू बजे आबे” सर अउ मेडम के हँसइ के आवाज काउंटर करा ले आवत रिहीस हे।
रोहित काउंटर के आगू म खड्डा होके मार्क सीट मिले के इन्तजार कारत रिहीस हे, अउ सर मन दू बजे के इन्तजार।

सिसटाचार

गियारह बजे के बेरा आय, मिथलेस अपन संगवारी मनसन गोठियात जात राहे। परकास कहिथे, ”कइसे रे मिथलेस तेहा अबडु दिन बाद कालेज आय हबस, आजकल तोर दरसन दुरलभ होगे, कहाँ जाथस दिखस निही।” मिथलेस कहिथे, ”अबड बियस्त होगे हो यार सबो डाहन ल देखे ल पडुथे घर डाहन घलो अबडु बूता हाबै।”
सबो झन पढडया लइका मन अपन -अपन किलास म जात रिहिस ओतकीच बेर कालेज के प्रिंसपल आ जथे अउ मिथलेस ल देख के कहिथे, ”आप मेरे आफिस में आइए।”
मिथलेस ह कोन ल काहत हे कहिके पाछू डाहन ल देखथे त पाछू डाहन कोनो नइ राहय । रामलाल कहिथे, ”अबे सर तोला बलाइस हाबे।” मिथलेस डर्रागे मेहा फाइनल ल प्राइवेट करत हाबौ कुछू गलती घलो नइ करे हाबो, फेर मोला काबर बलावत हे। सोचत-सोचत पछीना -पछीना हो जथे, ले दे के आफिस के मंझोत म जा के कहिथे, ” मे आइ कमिन सर” भीतरी डाहन ले आवाज आथे, ”यस कमिन” जइसे भीतरी म जाथे, प्रिंसपल अपन कुर्सी ले उठ के मिथलेस के तीर म आ जथे अउ वोला कहिथे, ” अपने कमीज का बटन लगाओ ।”
मिथलेस लकर-धकर लगाथे । प्रिंसपल ह मिथलेस के पीठ म हाथ ल फेरत कहिस, ”अब जाओ बेटा”।

का होही संगवारी

ये वो दिन के बात आय हमर राज म ‘विश्व नशामुक्ति दिवस’ रिहिस । सुकदेव मोर तीर म आके कहिथे, ” तै कहिसे बइठे हावस जी? चल आज गाँव भर म भपका ल धर के नसा के बिरोध म नारा लगाना हे, नसा ले मनखे मन ल दुरिहा राखना हे।”
गाँव के जम्मो डोकरा जवान,लइका -पिचका सबो नारा लगात रेंगय । मितानिन – सत्यबती कुसुमलता, डेरहिन मन घलोक अपन हिम्मत देखावत जी-जान लगादिस। हमर हेडमास्टर तको बढिया अगुवानी करत रिहिस । सुरूज अपन दिसा ल बदल डरिस, फैर ये आंदोंलन करइया मन अपन इरादा ले टस ले मस नई होइस।
जम्मो झन के आँखी म एके ठक सपना दिखय, जे घेरी-बेरी नशा के बिरोध म गुहार करत राहय। इकर संकल्प अउ एकता ल देख के मोर आँखी डाहर ले खुसी के आँसू चुचवात राहय । मोर मन कहेलागिस हमर राज ले अब ये दारू अउ नशा के जम्मो दुकान,पियइया के खानदान सबो एके संग कचरा कस बहरा जही।
ओतकीच बेर मंमतू अउ डुमन एके जगा सकलाके कहिथे, ‘बहुत मजा अट्टस भाई गाँव भर म किं जर के फे रा लगायेन, बिहनिया ले संझा होगे अबडु गोड-हाथ पिरात हे, चलना, तीर म भट्ठी हाबे । उहंचे जाके आधा -आधा पाव पातर-पातर मारबो जम्मो दुख पीरा एके घाव म सिरा जही।” आंदोंलन करइया मन एकर मतलब नई जानही त हमर राज के का होही संगवारी।

परिवर्तन

सहर डाहर जावत रेहे हाबो । रद्दा म मोला मेहत्तर मिलगे, मोला कहिस, ” सुकुमार कहाँ जावत हस जी, आ बइठ ले ताहन जाबे।” जिद करके घर कोती लेगीस । मन म महूं केहेंव चल रे भाई इही बहाना ओकर घर ल देख लूहूं । जइसे ओकर मुहाटी म त उपर म लिखाय राहे, ‘ अतिथि देवो भव’ मे केहेंव, ” बड सुग्घर लिखाय हाबै जी अउ बढिया संदेस घलो जावत हे।”
पाँच साल बाद मोर टूरा के बिहाव करे बर टूरी खोजे बर भोरहा ले उही गाँव म पहुँच गेंव जिहां मेहत्तर रथे। अउ संयोग म फेर रद्दा म मिलगे त कहिथे, ” बहूत दिन बाद दरसन देव कविराज, सब बने-बने हाबै निही, चला घर डाहन बइठ के जाबे।” जइसे मे वोकर घर के मुहाटी म गेंव त देखथव घर ह पक्की बनगे हालै चकाचक दिखत राहे अउ चौखट के उपर म लिखाय राहे ‘ कुकुर मन ले सावधान’।

आदिमानव

सुकारो के छुट्टी झटकुन हो जथे, रद्दा म खेलत -खेलत घर जाथे अउ अपन बस्तर ल पठेरा म मड्हा के हड्या- कुड्डेरा ल माँजे बर बोरींग डाहन जाथे ।
रातकुन घर म पढे बर बइठिस ताहन ओकर बबा ह पूछथे, ‘ ‘तोर गुरूजी मन आज का पढईस गोई ?” सुकारो लजावत कहिथे, ”आदि मानव के बारे म बताइस हे, आदिमानव मन पहिली उघरा किंजरे कथे । पहिली कपड्य नइ राहय त पान-पतई ल पहिरे राहय।”
ओतकीच बेर खेत डाहर ले मोहन आथे अउ टीबी ल चालू करके गाना सुने बर नाइन एक्स चैनल ल लगाथे, ओमे ‘ कांटा लगा- — कहिके अबडु झन टूरी मन नाचत रथे । तेला सुकारो देख के डर्रा जाथे अउ अपन बबा ल चिह्लावत कहिथे, ” वाहद्दे गा आदिमानव मन टीबी म आय हाबे।”

धुर्रा

इतवारी, मंगलू अउ बुधराम ह, सुरेस के दूकान कर बइठ के अपन-अपन मन के गोठ ल गोठियात राहय । उदूप ले बुधराम के नजर ह सड्क डाहन जाथे। ‘ जिपरहा’ कवि ल आवत देख डरथे । अपन संगवारी मन ल कहिथे, ” भागो रे ‘ जिपरहा’ कवि आवत हे अपन कविता सुना सुना के हक खवाही।”
बिहान दिन मंमतू, रामाधार, जेठन मन उही जगा सुरेस के दूकान कर बइठ के आनी -बानी के गोठ -गोठियात राहय । जेठन ल देखके ‘जिपरहा’ कवि वोकर तीर म आ जथे । जेठन कहिथे अड्बडु दिन बाद दरसन देव कविराज।
त ‘ जिपरहा’ कवि ह कहिथे, ” दरसन ल छोडौ अउ मेहा नवा कविता लिखे हाबो तेला सुनौ,कहिके सुरू हो जथे- ‘चलव ये ल जुरमिल माथ नवाना हे धुर्रा इहा के चंदन हरे येला माथ म लगाना है।”
ओतकीच बेर एकठन बइलागाडी ह बिक्कट रेस म चलत आथे। अलकरहा धुर्रा उड्डावत भागथे, त कविराज कथे , ” ये साले ल देख धुर्रा- माटी छिटकावत जावत हे, जम्मो मोर नावा कुरता पइन्ठ धुर्रागे।”
मंमतू हांसत -हांसत कहिथे, ” कवि महोदय ये धुर्रा थोडे हरे ये चंदन हरे चंदन।”

समया

मोहन के घर म झगडा ह रोजेच के बात होगे राहय । मोहन ह काम बूता म नइ जाय , घरे म बइठे राहय । उपर ले अपन दाई- ददा ल अबडु खिसियाय ।
एक दिन ओकर संगवारी राकेस ह ओकर घर अइस मोहन बर भडक के कहिथे, ” तोला का होगे हाबे, कोन तोला काय खबवा दे हाबें रे पहिली ते इसने नई रेहेस अपन दाई-ददा के सेवा करस , फेर आज तिही ह वोमन ल दुख देवत हस, काय बात होगे तेला मोला बता।’
मोहन आँखी ल रमजत कहिथे, ”का बताओ संगवारी पन्द्रह दिन पहिली के बात आय, खेत डाहर जाय बर घर ले निकलत रेहे हो। ओतकीच बेर एक झन साधु बबा मिलगे, वोहा किहिस, “जिनगी देने अउ लेने वाला भगवान हरे जेकर किसमत म जे लिखाय हाबे, उसनेच होथे । तेहा एक महीना बाद मर जबे तोर माथा के लकीर बतावत हावे ।’ अब ते बता राकेश मोर भाई, ” दाई-ददा मोला अबडु मया करथे । मोर मरे के बाद ओमन जीयत-जीयत मर जही । मेहा एकलौता बेटा हरव, येकर सेती ओकर मन म मोर बर नफरत पट्दा करत हाबौ । जब मे मरौ त मोर मडत के दाई-ददा ल दुख झन होवय।” अतका ल सुन के राकेश के आँखी डाहर ले आँसू बोहाय ल धरलीस ।

रेट

हिरउ ल बडे सर पूछथे, ” अरे मेडम मन कहाँ हे रे।” मुडी ल खजवात हिरड कहिथे, ” सर मध्यान्ह भोजन देखत हवै।” बडे सर कहिथे, ” खाहू ताहन मेडम मन ल बलइस हे कबे।”
थोड्कीन बाद मेडम मन आथे, अउ सर ल पूछथे, ”बलाय हस का सर।’ ‘सर कहिथे, ” हव ये लुगरा कम्पनी ले आय हे, कोसा के लुगरा हरे काहत हे, देखलव पसंद आही ते रखलव।” मेडम मन कहिथे, ”नइ रखन सर।”
बडे सर जिद करथे, अउ निहीत एकाठक रखलोन मेडम । त रेट ल पूछथे, ” कतका हरे एक ठक ? ”चार सौ पड्ही”। लुगरा वाला कहिथे । एक झन सर कहि थे, ” पाँच सौ म दू ठन देबे, सबो कोनो रखबो, अउ नही त कोनो नइ रखन।” लुगरावाला थोडकीन अनाकानी के बाद मान जथे। सब झन दू दी ठक लुगरा रखथे।
गोठ-गोठ म सोनी सर, सिन्हा सर ल पूछ परथे । भौजी ल कतका के हरे की के बताबे जी । सिन्हा सर कहिथे, ”एकक ठक ल पाँच- पाँच सौ बताहूँ नही त मोला खिसयाही सस्ता वाला ल खरीद के लाय हस कहिके।”
मजाक-मजाक म बडे सर ल पूछथे, ”आप कतका बताहूँ सर।” बडे सर कहिथे, ” हमर गाँव डाहर वजन वाला लुगरा ल पसंद करथे जी, दुनो ल तीन सौ के हरे कहू तब उठकर मन आही अउ पाँच सौ के हरे कहू त हाँसही ठगागे कहिके।”

सिकायत

गाँव वाला मन के बात ल सुन के गुरूजी झल्ला जथे, अउ कहिथे, ” में समे मे नइ आवत हो का, लइका मन ल नई पढात हो का,मोर पढाय लिखाय म कोनो कमी हे का, तेमे तुमन रोज दिन सिकायत करथौ । कोनो कमी हे ते कक्षा भीतरी जा के लइका मन ल पूछ लव।” गाँव वाला के सिकायत ल सुन के गुरूजी तंग आगे रिहिस, नान-नान बात म गाँव के मन ताना दे, ट्रांसफर करवा देबो कहिके धमकी दे।
कुछ साल बाद इस्कुल म नावानावा गुरूजी अउ आ जथे। अब गाँव के मन ल घलो कोनो सिकायत नइ राहय,दिनो-दिन बड़हत ल देख के वो गुरूजी सोचथे, भइगे गाँव तीर म मोर ट्रांसफर करवाहूँ। बडे अधिकारी कर बात करथे त अधिकारी कहिथे, ”40 हजार लागही।” गुरूजी मुड्डी ल खजवात कहिथे, ”मोर करा अतका अकन पइसा नई हे साहब।” वो अधिकारी कहिथे, ”फोकट म कराना हे त एके रद्दा हे, कोनो तोर सिकायत करे तोर ट्रांसफर फोकट म हो जही।”
ये बात ल सुन के वो गुरूजी भगवान से दुआ करथे, ” हे भगवान अब मोर कोई तो सिकायत करे…..।”

अंगूठा छाप
पचायत
एक नम्बर के अधिकारी नाम ल पुकारत जाथे। दू नम्बर के सरपंच अउ पंच के बैलेट ल देवत गिस। तीन नम्बर के अधिकारी जनपद अउ जिला के बैलेट पेपर ल जारी करत गिस।
एक नम्बर के अधिकारी नाम पुकारिस, ” मटोराबाई तीन सौ बीस ।” बाजू म बइठे एजेन्ट मन नाम ल मिलाइस । दू नम्बर के अधिकारी ऐती आ एमे अंगूठा मार कहिके, पेड ल दिस त मंटोरा कहिथे, ”मे लिखथो साहब मोला पेन ल दे।” वो अधिकारी कहिथे, ” लिखे म जादा समे लागथे, चल जल्दी अंगूठा चपक।” मंटोरा अंगूठा ल चपकिस ताहन वोला सरपंच अउ पंच के बैलेट ल दिस। सरपंच के बैलेट म मुहर लगा के पंच म लगाय ल धरिस, त देखथे वोला तीन नम्बर वार्ड के बैलेट मिले हे । वो सीधा पीठासीन कर जाके कहिथे, ” साहब में पाँच नम्बर वार्ड के हरौ अउ मोला बैलेट देहे तीन नम्बर के।” अतका सुन के पीठासीन पसीना -पसीना हो जथे, अउ दू नम्बर के अधिकारी ल चमकात कहिथे, ”मोला सस्पेंड कराके छोड हूँ का तुमन, इसने गलती कर हूँ, मोला समझ नइ आवत हे कोन ल अंगूठा छाप काहंव। ”

परीक्छा

समारू अपन मझला बेटा के बिहाव करिस। टूरी ह टूरा ले जादा पढे लिखे हे, अउ अभी तक ले पढत हे, कहिके जम्मों घर वाला खुस होगे। एक दिन दू बजे के बेरा आय, समारू के बडुका टूरा पुनठ खेत डाहन ले आके कहिस, ” दाई भात देत वो।” वोकर दाई भात साग निकाल के देथे ।
मझला टूरा ह अपन बाई ल परीक्छा देवाय बर लेगत रहिथे, त वोकर दाई ह कहिथे, ” तोर बडका भट्टया ल एक कनीक दार दे दे ओकर थारी के दार सिरागे है।” ओकर बोहो कुछू नई काहय, मझला टूरा कहिथे, ” येकर परीक्छा हे या जल्दी म हाबन।”

अटल चौक

घना अउ रामानंद म पक्का दोस्ती राहय। वोमन कहूं जातीस त एके जगा सकलाके जावय। वोकर सकलाय के जगा राहय ‘ अटल चौक’ दोनो के बिहाव हो जथे फेर ओकर मन के संग ह नइ छुटिस।
राजिम मेला म कार्यकरम देखे बर जाय बर घना ह रामानंद ल फोन लगाके कहिथे, ” अबे झटकुन आ में अटल चौक म हबौ।”
घना के गोठ ल सुन के घना के बाई कहिथे, ” ते अतका बडु बाड्गे हाबस तभो ले लबारी मारथस जी तेहा घर म हाबस अउ अटल चौक म खडे हो कहिथस।” घना कहिथे, ” अरे पगली ते नइ जानस, में कतेव मे घर में हो, त साले अपन कहितिस में अटल चौक म खडे हो बे झटकुन आ”।

इसारा

दुर्गा रोज फिक्स छुट्टी होय के टाईम म आय। एकाद दिन नइ पहुंच पाय त गुरूजी लइका मन ल भेजय। दुर्गा आतिस तभे इस्कुल के छुट्टी होतिस। एक दिन मध्यान्ह भोजन के घंटी झटकुन बजगे।
दूसरी कक्षा के लइका चौथी कक्षा म आ के कहिथे, ” सर खाना के घंटी लगगे।”
सर, ” अरे आज कडखन लगगे।” सर डाक बनात रथे, त उही कक्षा म रुक जथे। लइका मन ल कहिथय, ” जावव तुमन खाना खा लव।”आधा घंटा के पाछू म चौथी कक्षा के लइका आ के पूछथे, ” सर आज झटकु न छुट्टी होही का।” सर जवाब देथे ”काबर रे।” वो लइका मुसकुरात कहिथे, ” सर दुर्गा आ गेहे।” लइका के जवाब ल सुन के अब गुरूजी मुसकुराय ल धर लेथे,

फेल

चिह्लात आथे। बाबू गा, बाबू गा। नकछेड्डा कहिथे, ”काबर हफ रथ आवत हस।” अपन रिपोर्ट कार्ड ल देखात कहिथे,” बाबू में पास हो गेंव।” नकछेडा कहिस, ” देखा भला।”
बिहान दिन नकछेडा इस्कुल पहुँच जथे। गुरूजी ल देख के कहिथे, ” गुरूजी जय हिन्द।” गुरूजी घलो जवाब म कहिथे, ‘ ‘जय हिन्द आ नकछेड्डा बठ, कइसे आना होइस।” नकछेडा कहिथे, ‘मोर लइका कुछू नई जाने किताब के लिख ल छोड बोला, अलवा -जलवा अपन नाम लिखे बर घलो नइ आय। आप मन ह गुरूजी वोला कइसे पास कर देहो भ्द।”
गुरूजी समझात कहिथे, ” नकछेड्डा सासन के साफ निर्देस आय हे, कोनो लइका ल रोकना नई हें। वोला हर साल आगू कक्षा म बढाना हे, चाहे कुछू जाने चाहे मत जाने।” अतका बात ल सुन के नकछेड्डा के डीमाक फेल हो जथे।

पारटी के रुतबा

लोकेस अउ राजेस अपन गाडी ल धर के मनोज कर जाथे अउ कहिथे, ”चल न रे भाई, सहर ले आबो मोला पी एस सी के किताब लेना हे |’ ‘दूनो झन मनोज ल मनाथे, अबड देर म वो टूरा हव कहिथे । लोकेस कहिथे, ” एक ठोक गाडी ल छोड देथन पेट्रोल के घला बचत होही।”
तीनो झन एके गाडी म निकल थे। सहर के तीर म पहुंचथे त आगू डाहन, पूलिस वाला मन अबड् रोकत राहय । फरफटी ल रोक के एक झन डोकरा ल पुछथे, ” कइसे बबा ये पूलिस वाला मन काबर छेकत हे गा।” डोकरा कहिथे, ” अरे बाबू मंत्री जी के दउरा हे अउ तुमन तीन झन हो एके फरफटी म तुहर हजार पाँच सौ नइ बाचय।”
मनोज कहिथे, ”तेकर ले भइगे आन दिन आबो का यार।”
राजेस ” चलना यार में कहू तइसने करबे अउ ओकर कान म दता के कहीं बोलथे । पुलिस वाला कुछ नइ करे”। मनोज उसनेच करथे सीधा फरफटी ल पुलिस वाला के आगू म रोक के ऊँचा आवाज म कहिथे, ” ये हवलदार मंत्री जी आ गये क्या ?” ”वोतका ल सुन के वो पुलिस वाला धीरे आवाज म अंगरी ल देखावत बताथे, ”हव आगू म हाबै जाव।”

खरचा

नकछेड्रा के धान ऐसो बने होइस । बइला गाडी म जोर के मंडी जात रीहिस । जाडु के मौसम आय, नकछेडा बिडी ल सुलगाँव साले ल कहिके गाडी ल रोक के बिडी ल सुलगा के माचिस के लुख ल फेंकत -फेंकत बइला के पीठ उपर फेंक डरथे। बइला तरमरा के रेंग देथे अउ नकछेडा गाडी ले गिर जथे। नकछेडा के हाथ टूट जथे।
जइसे वोकर बेटा ल पता चलथे, लकर धकर आके इलाज करवाय बर लेगथे । दिन बितत जथे। नकछेडा के बाई रोज अबड बखाने, ” ये डोकरा बर तीस-तीस हजार खर्चा करे हे, मोर बर सब के आँखी फूटगे है।”
एकदिन तो हद हो जथे बखनईइ के। वोकर बेटा के दिमाक खराब हो जथे, त कहिथे अपन टूरा मन ल, ” लात रे ईटा ल येकर हाथ गोड ल कुचरो, ये तीस कथे में पचास हजार खरचा कर हूं येकर उपर।” डोकरी मोला बचाव ददा कहिके चिल्लाय लगथे।

सलेक्सन

जइसने बारा बजथे। कार्यकरम म भाग लेवइया जम्मो टूरा – टूरी मन बी ए फाइनल के कलास म सकलाय ल धर लेथे। भीखम, संतोस ल कहिथे, ” अरे यार हमर कार्यकरम ल दू बार होगे, सर सलेक्ट करबे नइ करत हे।
आज फाइनल हरे आज सलेक्सन नइ होही त हमन कालेज के गेदरींग म भाग नइ ले सकबो।” संतोस मुसकात कहिथे,’ ते फिकर झन कर ये पारी में फुल जुगाड करे हव यार, रेडियो वाला ल बोले होभाई आधा मिनट बस चलाबे, अउ हमर जम्मो संगवारी मन ल चेता डरे हो जइसने हमन आबो फुल ताली ठोकहू रे नाचत ले।”
जइसने वोकर पारी आथे उडकर बताये अनुसार रेडियावाला अउ वोकर संगवारीमन कर थे। ताली के बजई ल देख अउ सुन के सर मन कहिथे, ” तुहर कार्यकरम के सलेक्सन होगे।”

हाटाटेक

गजाधर के तबीयत घेरी – बेरी बिगडे। एक दिन वोकर परौसी रामू ह पूछथे, ” कइसे भट्टया का लागत हे गा, सुने हो हाट म पराबलम रहिथे । एक बार हाटाटेक आ गेहे।” गजाधर जवाब देथे, ‘ ‘सही सुने हस भाई ”, रामू सलाह देथे, ” ते सहर म जा के बने इलाज पानी करा जी, सहर म कई ठन बने -बने अस्पाताल हाबे।”
रामू के गोठ ल सुन, गजाधर के गोसइन चमेली कहिथे, ”कलीच जाबो देरी नइ करन ।” सहर म जा के डाक्टर करा जम्मो परेसानी ल बताथे। डाक्टर समझाते, ” सब ठीक हो जही नो पराब्लम, इहाँ तीन दिन ले भर्ती होय बर परही।” चमेली कहिथे, ‘ ‘हव साहब।” देखत-देखत तीन दिन बीत जथें, चमेली डाक्टर ल पूछथे, ‘मोर गोसइया ठीक होगे का साहब। डाक्टर कहिथे, ” ठीक हो रहा है।”
पन्दराही ठीक हो रहा है, ठीक हो रहा है, में निकल जथे।, सोलवा दिन गजाधर ल बाहिर निकाल थे, अउ कहिथे, ‘ये एकदम ठीक होगे, अब येला जिनगी म अउ कभू हाटाटेक नई आय”। गजाधर के खुशी के ठिकाना नइ राहय। कोन्टा मा लिबिसटिक लगाय कमपुटर के आगू म बइठे माइलोगन कहि थे, ”गजाधर ये तुम्हारा बिल।” गजाधर अपन गोसइन ल भेजथे, ” जात वो चमेली, के पइसा ये देके आ जा।” खरचा के बिल ल देख के अब चमेली ल हाटाटेक आ जथे।

समझदारी
जइसने हिरामन घर पहुचथे, रमसीला पानी धर के आथे अउ कहिथे, ” लेव जी पानी पियव, ” संझाकुन हटरी जाबे ता मोर बर खङड लाबे। सब झन अपन अपन गोसइन बर कुछू न कुछू खइ लात रथें । अतका दिन होगे ते मोर बर कुछू नइ लाय हस ।” हिरामन कहिथे, ” हव लाहू वो।”
संझाकुन हटरी ले आथे, घर के मुहाटी म पहुँचथे अउ कहिथे, ‘ये ले वो खड सबोझन बाँट लव।” रमसीला रिसा के अपन कुरिया म चल देथे। हिरामन मनाथे, ” का होगे रे पगली, ते काबर रिसाय गेस । ” रमसीला मुहूं ल फुलो के जवाब देथे, ” सब अपन-अपन बाई बर लाथे अउ ते लाथस त सबो झनबर लाथस, अक्केला मोर बर नइ लानस।”
हिरामन समझाथे, ” देख रे पगली घर म हमर माँ बाप हे भाई मन हे वो मन ल नई दूहू त कइसे लागही।” रमसीला कहि थे, ” वो मन ल कुछू लागे हमन ल काय करना हे।” हिरामन मुसकात कहिथे, ” अरे पगली एक झन हमरो लइका हे, वहू बडे बाडही, ओकरो बिहाव होही, ओकरो गोसइन इसने कही, हमन हमर माँ बाप के जगा म रबो त हमन ल कइसे लागही।”

अतिसेस

प्रधान पाठक दूनोझन मेडम मन ला बला के कहिथे, ” मेडम तुहर मन के नाम अतिसेस म आय हे ।” जब किलास के बाँटवारा करथे त तुमन अतिसेस हो कहिके एको ठक किलास नई देवय। खाली समय म अतिसेस के नाम म अबड हाँसी ठिठोली घलो करय । जे दिन जेन गुरूजी नइ आय वो दिन वोकर किलास म भेज देवय । कभू डाक अमराय बर, कहू अउ कुछू काम करे बर तियार देथे। अउ प्रधान पाठक टूहूल -मुहूल करके अपन समय ला पूरा काट देथे।
मेडम मन अबडु हतास होगे रिहिस, वो मन सर कर जा के खिसयाथे ” हमन ल ते कुछ भी काम कराथस सर।” सर आँखी ल रमजत कहिथे ” अतिसेस हो, सब काम करे ल परही।”
प्रधान पाठक के बिवहार ले एकदम दुखी होगे। एकदिन मेडम मन उदास होके सरपंच कर जा के अपन दुख ल बतात कहिथे, ”हमन तो कुछू न कुछू करते रथन अउ हमर प्रधान पाठक एक ठो किलास ल देखे बर तको नइ जाय। अब तिही बता सरपंच भइया, अतिसेस कोन हे”?

अप्पढ

बैसाखू के गोसइन बिसाहीन पढे लिखे नइ राहय । तेकर सेती गोठ- गोठ म बैसाखू बिसाहीन ल ताना देवय, ”ये अप्पड ल मार रे दू थप्पड्, मोर लइका मन बर तोर असन अप्पड् नइ मांगो, देखने कइसे पढे लिखे बहू लाहू तेला।” बिसाहीन, बखरी – बारी सबो काम ल अक्केला सम्भाल डरै। बिहनिया ले रोटी -पीठा, साग भात राँध के बनिहार के संगे -संग खेत -खार घलो जाय । फेर बिचारी के एके ठक गलती राहय कभू इसकुल के मुहूँ ल नइ देख पटस । समय बीत जथे । बैसाखू अपन दूनो बेटा बर चुन के पढे लिखे बहू लाथे । कुछ दिन बाद घर के पूरा दसा बदल जथे । बहूमन आराम से 6 बजे उठय, अउ पहिली ब्रुस करे, बाद म घर के काम बूता ल धरय । रोज के ये हाल ल देख के बैसाखू के दिमाक खराब हो जथे।
बाहिर ले आय त कोनो पूछइया नई राहय, दूनो अपन -अपन कुरिया म मस्त राहे । कोनो खेत -खार नइ जान काहे, बिसाहीन कहिथे, ” खेत -खार के काम ल नइ सिखहू त काय कर हूँ, हमन डोकरी -डोकरा हो गेन तभो ले कमात हन।”
संझाती बेरा एक दिन बिसाहीन बैसाखू ल इही सब बात ल बतात रहिथे, ” येमन कइसे करही जी मोला समझ नई आय।”
बैसाखू भडक जथे ” साले मोर खबई पियई म ठिकाना नइये, ये घर म चैन नई मिले,ते चुप रे अप्पढ।”
बिसाहिन कहिथे, ” हाँ -हाँ में अप्पढ हरौ, लाय हस दू झन बहू, पढे लिखे कतका पान हे तेला देखत हन।” बिसाहिन के गोठ ल सुन के बैसाखू के मेछा ओरम जथे।

लबारी

मिथलेस अबडु खुस होगे, में फाइनल म पास होगेव कहिके । मार्कसीट ल पेपर म गुमेट के धरथे, अउ सीधा अपन भाई के दुकान चल देथे । टेबुल म मार्कसीट ल मडुहाथे, ओकर भाई दीपक कहिथे, ”आज अबडु खुस दिखत हस का बात आय।” मिथलेस कहिथे ”भाई में बी ए पास होगेव।” दीपक हाथ ल लमात कहिथे, ” बने हे रे एके घाव म निकल गेस देखा तोर मार्कसीट ल के परसेंट आय हाब।” मिथलेस देखाय बर टेबुल डाहन ल देखथे त वो पेपर गायब रहिथे।
जकर-बकर, येती-वोती खोजथे नइ मिलय, आसपास के दूकान ल तको खोजथे, हो सकथे पढे बर पेपर संग वहूला लेग गे होही कहिके फेर मार्कसीट वाला पेपर नइ मिलय । मिथलेस रोये ल धर लेथे, ओकर भाई खिसयात रहिथे । वोतकी बेर मिथलेस के संगवारी रामलाल आथे अउ पूछथे, ”का होगे यार।” पूरा बात ल बताथे, रामलाल कहिथे, ” फिकर झन कर युनिवरसिटी म जा के आवेदन लगाबे वो तोला दूसर कापी दे दिही।” बिहान दिन मिथलेस उसने करथे उहाँ के बाबू ह कहिथे, ” एक हफ्ता बाद आओ ।” वोकर बताय अनुसार मिथलेस एक हफ्ता बाद फेर जाथे अउ कहिथे, ” सर मोर मार्कसीट ल देवव।” वो बाबू कहिथे, ” अभी बना नही है चार दिन बाद आना।’ तब मिथलेस इसने फोक मारथे, ” सर बिहारी मेरे अंकल है वो तो बता रहे थे की दो दिन पहले से बन गया है।” बाँके बिहारी के नाव ल सुनथे ताहन, लकर -धकर पूछथे, ” तोर का नाव हे।
” मिथलेस अपन नाम ल बताथे, ताहन वो बाबू कहिथे, ”ये ले तोर मार्कसीट। ”

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